रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि अभय दान सर्वदानों में श्रेष्ठ दान है। देना, दिलाना और अनुमोदन करना तीनों ही श्रेष्ठ है। इसमें आपको कोई धन खर्च करना की आवश्यकता नहीं है!
अनुमोदना करने वालों का दायरा इतना बड़ा है कि तीर्थकर गोत्र का बन्ध भी कर सकता है! अनुमोदना तो हर कोई कर ही सकता है। ज्ञानीजन कहते हैं आपके पास देने के लिए समय है! आप संसारिक – कार्यो को करते हुए भी दिन की चार- या पाँच सामायिक कर सकत है! जो तिरने की अभिलाषा रखता है वह कोई बहाना नहीं करता है।और समय निकाल कर धर्म ध्यान अवश्य करता है। और जिस तरह घर में बचे हुए भोजन का दान आदि का उपयोग कर सकते हैं।
वैसे ही संसारिक कार्य करके बचे हुए समय का उपयोग धर्म आराधन में करो तो यह समय भी तारने वाला बनेगा ! उस समय को अभयदान में लगा दो! यह अभयदान पुणयानुबंधी पुण्य का कारण बनता है और आप शीघ्र ही मोक्ष मार्ग हो सकते है। यह मार्ग बड़ा सुगम है। दुनियां में आप कितना भी दान करते है लेकिन सर्वश्रेष्ठ तो अभयदान ही है। घर में परिवार बंधु जो धर्म ध्यान की प्रेरणा दो। सामुदानिक कर्म दुःख के है तो क्षय होगा यदि सुखानुबंघी सामुदायिक कर्म बंधेगे तो एक साथ मोक्ष जाने का मौका मिल सकता है। पापकर्म हो या पुण्य कर्म साथ बांधो तो साथ में भोगना पड़ता है। अभयदान के लिए आपको कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता है सिर्फ पुरुषार्थ चाहिए, सरलता, सुगमता, सहजता जिसके पास हो वही अभियदान दे सकते हैं।
महावीर के सानिध्य में 4411
दिक्षा एक साथ हुई यह कैसे संभव हुई सामदायिक शुभ कर्म एक साथ बाँधे तो एक साथ उदय में आये। धर्म मार्ग पर बढ़ते जीव को रोकना नहीं चाहिए। उनका अशुभ कर्मो का बंध होता है! अंतराय मत डालो । आज 30 से भी अधिक जनों ने तपस्या के पच्छखान लिए। जैन कान्फ्रेंस तमिलनाडु शाखा के अध्यक्ष गौतमचंद जी कटारिया उपस्थित रहे उनका सम्मान अध्यक्ष पारसमल कोठारी ने किया। जैन कान्फ्रेंस द्वारा सभी को प्रभावना दी गई। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने संचालन किया। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी ।