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अपने पापों को प्रकट कर प्रायश्चित करना भी तप है: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

अपने पापों को प्रकट कर प्रायश्चित करना भी तप है: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

साध्वी जी ने बताया कि आसान है उपवास करना, लेकिन प्रायश्चित, विनय और सेवा नहीं है आसान

Sagevaani.com @शिवपुरी। भगवान महावीर ने तप के जो 12 प्रकार बताए हैं उनमें प्रायश्चित भी एक है। प्रायश्चित में अपने पापों को प्रकट कर आंसू बहाने ्रचाहिए। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय पोषद भवन में आयोजित एक धर्मसभा में व्यक्त किए। इस अवसर पर मधुर गायिका साध्वी वंदनाश्री जी ने काव्यात्मक अंदाज में भजन गाते हुए कहा कि अपने पापों पर जब तू रो देगा, तेरा एक-एक आंसू पापों को धो देगा…।

साध्वी जयश्री जी ने बताया कि इंसान संसार में दुखों, परेशानियों और कष्टों को भोग रहा है। इनसे मुक्ति के लिए वह आत्महत्या तक कर लेता है या उसका विचार उसके मन में आता है, लेकिन वैराग्य की भावना कभी मन में नहीं उपजती है। उन्होंने कहा कि संसार में तो अनेक परिशय हैं, लेकिन संत जीवन में सिर्फ 22 परिशय ही आते हैं।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने विस्तार से भगवान महावीर द्वारा बताए गए 6 आंतरिक तपों में से 3 तपों प्रायश्चित, विनय और सेवा की व्याख्या काफी विस्तार से करते हुए कहा कि ये तप आसान नहीं है। पहले आंतरिक तप प्रायश्चित का उल्लेख करते हुए कहा कि संसार रूपी काजल की कोठरी में जाने अनजाने कालिख लग ही जाती है, लेकिन हमें उन कालिखों को धोना चाहिए और इसका सबसे बेहतर उपाय प्रायश्चित है। प्रायश्चित कैसे करें? इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि प्रायश्चित अपने गुरू के समक्ष करना चाहिए और गुरू भी ज्ञान दृष्टि से समृद्ध होना चाहिए। गुरू से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए और गुरू जो भी दण्ड दें वह स्वीकार करना चाहिए।

यह संभव ना हो तो घने जंगल में जाकर खड़े होकर दोनों हाथ ऊपर करके सच्चे दिल से अपने हर पाप को प्रकट करना चाहिए। ऐसा भी ना कर पाओ तो अपने पापों, गुनाहों और अपराधों को अपने हाथ से लिखो और उन्हें प्रतिदिन पढ़ो, लेकिन ध्यान रहे कि आंखों से नहीं, बल्कि दिल से पढ़ो। पापों को स्वीकार करते हुए आंखों से आंसू की धार बहना चाहिए। भगवान महावीर द्वारा बताए गए दूसरे आंतरिक तप विनय की चर्चा करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि विनय धर्म की नींव है। साधना से सिद्धि प्राप्त करने हेतु साधक को विनयशील होना आवश्यक है। विनय का अर्थ समर्पित हो जाना है। तीसरे आध्यात्मिक तप वैयव्रत्य (सेवा) की व्याख्या करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिए सेवा पुल का काम करती है।

भूखा मरना आसान है, सेवा करना नहीं है आसान

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि बाह्मय तप उपवास करना मुश्किल काम नहीं है, लेकिन सेवा करना बहुत मुश्किल काम है। सेवा करने वालों को अपनी इच्छा और सुख का त्याग करना होता है। सेवा करने वाला अपने लिए कुछ बचाता नहीं है और ना ही अपने वाले को बचाता है। सेवा करने वाला बदले में कुछ अपेक्षा नहीं रखता। यदि आपके मन में सेवा के प्रतिफल की आकांक्षा है तो ऐसी सेवा का कोई मूल्य नहीं है।

8 उपवास कर रहीं हैं बहन सुमन कोठारी

साध्वी रमणीक कुंवर जी की प्रेरणा से श्राविका बहन श्रीमती सुमन कोठारी 8 उपवास की तपस्या कर रही हैं। आज उनके 7 उपवास पूर्ण हुए। इस अवसर पर श्राविका बहन सुमन कोठारी के भाई अजय और संजय सांखला ने भोजनशाला का लाभ लिया और रविवार दोपहर को शासन माता के गीतों का आयोजन किया। कल श्रीमती सुमन कोठारी के 8 उपवास की तपस्या के उपलक्ष्य में पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में पूजन का आयोजन किया गया है और पूजन के पश्चात साधार्मिक वात्सल्य का लाभ तपस्वी बहन के परिवार ने लिया है।

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