श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में नव दिवसीय नवपद ओली आराधना सानंद संपन्न हुई। जिसमें अंतिम दिवस 85 आराधकों ने आयंबिल की तपस्या की । इस अवसर पर जयधुरंधर मुनि ने कहा तप से आत्मा तत्काल पवित्र हो जाती है।
जिस प्रकार दूध में मिले हुए पानी को अलग करने के लिए उसे अग्नि में तपाना पड़ता है उसी प्रकार अनादि काल से आत्मा पर लगे हुए कर्मों को विलग करने के लिए शरीर को तपस्या द्वारा तपाना जरूरी है। बिना कष्ट से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती है। चंदन को जितना ज्यादा घिसा जाता है वह उतना ही सुगंध देता है।
सोने को तपाने पर ही चमक आती है एवं चोट सहन करने पर ही पत्थर मूर्ति का रूप धारण कर पाता है। वैसे ही तपस्या के द्वारा आत्मा उज्जवल बनती है। नव दिन तक आयंबिल ओली आराधना करना इंद्रिय नियंत्रण करने की एक दुष्कर साधना है जो हर व्यक्ति आसानी से नहीं कर पाता है। तप करने वाले की अनुमोदना करने से स्वयं एक दिन तपस्वी बन जाते हैं।
शरद पूर्णिमा के अवसर पर कहा यह पावन पवित्र दिवस प्रेरणा देता है प्रकृति में होने वाले ऋतु परिवर्तन साथ ही जीवन में भी परिवर्तन लाना चाहिए। चंद्रमा की शीतल एवं धवल चांदनी से सभी प्रमुदित हो जाते हैं और प्रकृति के कण-कण में ऊर्जा एवं शक्ति का संचार होता है। व्यक्ति को भी अपना स्वभाव पूर्णिमा के चांद के समान शीतल ,सौम्य एवं निष्कलंक बनाना चाहिए।
श्रीपाल चरित्र का वांचन करते हुए जयकलश मुनि ने कहा संसार में चाहे कोई राजा हो या रंक, साधु हो या संत, अमीर हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा सभी को अपने किए हुए कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। कर्मो के खेल के आगे किसी का जोर नहीं चलता। व्यक्ति स्वयं नहीं अपितु उसके कर्म बलवान होते हैं।
व्यक्ति अगर अपना आत्म अवलोकन करें तो अपने जीवन में ही उसे कर्म सिद्धांत का दिग्दर्शन हो सकता है। उत्तम पुरुष कभी अपनी ॠद्धि – सिद्धि का अहंकार ना करते हुए उसे गुरु कृपा का फल मानते हैं। अपने आप को सब कुछ मानने वाले को कर्म अदालत की क्रूर सजा भोगनी पड़ती है।
अनजाने में यहां हंसी मजाक में कही गई बात कभी-कभी खुद पर ही लागू हो जाती है। किसी की निंदा, आशातना, अवहेलना करना भी बहुत बड़ा पाप है। किसी की आराधना कर सको या नहीं पर कभी भी आशातना नहीं करनी चाहिए।
धर्म सभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। इस अवसर पर नेमीचंद संचेती के सजोड़े आजीवन शील व्रत प्रत्याख्यान ग्रहण करने पर संघ की ओर से उनका सम्मान किया गया। 9 दिन तक आयंबिल ओली करने वाले 55 साधकों का भी अभिनंदन एवं सम्मान किया गया।
मध्यान्ह में जयमल जैन आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर में 100 बच्चों ने ज्ञानार्जन किया। दोपहर में एसएस जैन संस्कार मंच द्वारा आयोजित गुरु दर्शन यात्रा संघ के सदस्यों ने मुनि वृंद के दर्शन कर से आगामी चातुर्मास साहुकारपेट में करने की भाव भरी विनती प्रस्तुत की।
जयमल जैन चातुर्मास समिति के चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया मुनिवृंद के सानिध्य में 14 अक्टूबर से उत्तराध्ययन सूत्र पर विशेष प्रवचन एवं 15 अक्टूबर से प्रातः 8:00 बजे से पुच्छिसुणं का सामूहिक जाप होगा।