आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र का परिसर बेंगलुरु वासियों से खचाखच भरा हुआ था। हजारों नम आंखें अपने आस्था शिखर को श्रद्धा के साथ निहार रही थी। सभी को ऐसा लग रहा था मानो चार महीने चार पलों की तरह शीघ्र पूर्ण हो गए। दक्षिण भारत में शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का यह अद्वितीय चतुर्मास अनेक कीर्तिमानों के साथ अविस्मरणीय बन गया।
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः 8:21 पर तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र से मंगल विहार किया। विहार से पूर्व महातपस्वी ने सभी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए वृहद मंगल पाठ प्रदान किया। हजारों श्रावक-श्राविकाओं का हुजूम महातपस्वी को मंगल विदाई देने पहुंचा था। आचार्यवर ने विहार से पूर्व प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्रीमूलचंद जी नाहर, चेतना केंद्र अध्यक्ष श्रीसोहन जी मंडोत व श्री अमित जी नाहटा को साधुचार्या के अनुसार स्थान संभलाया। आचार्यवर तत्पश्चात धवल सेना के साथ बिरदी के लिए मैसूर-बेंगलुरु हाईवे पर गतिमान हुए।
लगभग 9 किलोमीटर विहार पूज्य प्रवर ज्ञान विकास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पधारें। इंस्टीट्यूट के शिक्षकों एवं छात्रों ने गुरुदेव का स्वागत किया। यहां उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए शांतिदूत ने कहा कि साधु स्थान से निर्लिप्त होता है। जैसे सांप अपनी केंचुली को छोड़ देता है, वैसे ही चतुर्मास पश्चात साधु को स्थान स्थान छोड़कर विहार कर देना चाहिए।
आचार्यवर ने आगे कहा कि संसार में चार तरह के व्यक्ति होते हैं सदात्मा, दुरात्मा, महात्मा और परमात्मा। परमात्मा तो परमेश्वर होते हैं और महात्मा सब कोई नहीं नहीं बन पाते। व्यक्ति सदात्मा बने दुरात्मा न बने। दुरात्मा वह होता है जिसकी कथनी और करनी में अंतर होता है। एक बार जो वचन दे दिया फिर फिर उसे यथासंभव पूरा करना चाहिए। हमारी कथनी करनी में समानता रहे। व्यक्ति अपने जीवन को सद्गुण मोतियों से शोभित सदात्मा बने।
कार्यक्रम में दायित्व हस्तांतरण के तहत बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्रीमूलचंद जी नाहर ने हुबली मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्रीसोहन जी कोठारी को जैन ध्वज सौंपकर दायित्व हस्तांतरण किया। गुरुदेव के बिरदी पदार्पण पर श्रीमुकेश देवड़ा, बसंता देवड़ा, निश्चल दक आदि ने भावाभिव्यक्ति दी। देवड़ा परिवार की बहनों ने गीत का संधान गीत का संधान किया
सायंकाल लगभग 2 किलोमीटर का विहार कर गुरुदेव बिरदी स्थित देवड़ा परिवार के निवास स्थान पर पधारे।
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