★ गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी ने साधना, आराधना के द्वारा निर्वाण पद को प्राप्त करने की दी प्रेरणा
★ त्याग प्रत्याख्यान के माध्यम से प्रारम्भ हुआ पर्वाधिराज पर्यूषण महापर्व
Sagevaani.com @चेन्नई ; देवी देवताओं के पास वैभव, सम्पदा की बहुलता होती है, शरीर भी स्वत: सुगंधित होता है। मनुष्य का शरीर मल मूत्र से भरा होता है, सांसारिक वैभव सम्पदा भी देवों से कम होती है, फिर भी देवता भी मनुष्य जन्म की चाह रखते है। क्योंकि मनुष्य जन्म में ही साधना, आराधना के साथ त्याग प्रत्याख्यान किया जा सकता है। आत्मा से परमात्म पद को पाया जा सकता है। आज से पर्वाधिराज पर्यूषण महापर्व प्रारम्भ हुए है। यह पर्व हमें बाहर से भीतर की ओर, भोग से त्याग की ओर, परिग्रह से संयम की ओर जाने की प्रेरणा देता है। उपरोक्त विचार श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में धर्मपरिषद् को आत्मोदेशना देते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहें।
◆ सब दानों में सर्वश्रेष्ठ अभयदान ◆
एक मार्मिक उदाहरण के साथ प्रेरणा देते हुए गुरु भगवंत ने कहा कि दानों में अभयदान सर्वश्रेष्ठ दान है। जैसे पांचवीं राणी के निवेदन पर परिस्थितियों के कारण चोर्य कार्य में परिणित व्यक्ति को राजा फांसी की सजा को माफ कर देता है और वह व्यक्ति भी अपने पश्चाताप के साथ भावविभोर हो जाता है। राणी के द्वारा प्रदत्त लुखी रोटी और दाल भी उसे छप्पन भोग के सामना लगें। उसी तरह यह पर्व हमें भी यहीं संदेश देता है कि हम छहों काय के जीवों की विराधना से बचे, आराधक पद को प्राप्त करने की दिशा में गतिशील बने।
◆ पर्यूषण महापर्व में करें सम्यग् आराधना ◆
गुरुवर ने कहा कि हम अपने अस्तित्व को व्यक्तित्व के माध्यम से प्रबुद्ध में बदल सकते है। तीन चीजें है- अस्तित्व यानि सड़क पर पड़ी हुई मिट्टी। वहीं मिट्टी कुम्हार के हाथ में आने पर वह मसलता हैं, लौंदा बनाता है, चाक पर रखता है, वह उसका व्यक्तित्व है और जैसे ही कुम्हार उसे अपने हाथों से आकार देकर घड़ें का निर्माण करता है, बनाता है। तो मिट्टी का प्रबुद्ध घड़े के माध्यम से प्रकट होता है। ठीक वैसे ही सोना मिट्टी से बाहर निकल कर शुद्ध बन कर आभूषण के रुप में निर्मित होता है, वह सोना का प्रबुद्ध रुप बन जाता है। हम भी अनन्त भवों से अव्यवहार राशि में रहते हुए, व्यवहार राशि में आये, यह मेरा अस्तित्व है। एकेन्द्रिय से मनुष्य पंचेन्द्रिय तक पहुंचा व्यक्तित्व है, अब मुझे साधना, आराधना से साधु बन कर सिद्धत्व को प्राप्त करना है, वही मेरा प्रबुद्ध पद है। इस पर्यूषण पर्व में ही नहीं अपितु हमारा हर समय यही लक्ष्य होना चाहिए कि मुझे अपने अस्तित्व से व्यक्तित्व का निखार कर निर्वाण को प्राप्त करना है।
इससे पूर्व मंगलभावना के साथ पर्यूषण पर्व की विधिवत स्थापना हुई। गुरुवर ने पर्यूषण महापर्व के मनाने की श्रेष्ठता उल्लेखित किया। सैकड़ों सैकड़ों भाई बहन सूर्योदय से पूर्व ही समवसरण में पहुंच अष्ट दिवसीय अठाई तप में सलग्न बन गयें। अनेकों श्रावक समाज ने त्याग प्रत्याख्यान के माध्यम से आज के दिन की आराधना में गतिशील बन रहे हैं।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती