चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि यदि व्यक्ति अपने अधूरेपन को स्वीकार कर ले तो वह एक दिन पूर्णत्व को प्राप्त जरूर करता है। यदि घर-परिवार में व्यक्ति में यह समझ और भाव आ जाएं कि कोई भी पूर्ण नहीं होता है और मैं भी सर्वगुण संपन्न नहीं हंू, मुझ में भी कई कमियां है तो संसार के सभी लड़ाई-झगड़े स्वत: ही सुलझ जाएंगे।
उन्होंने कहा है कि जो आपके वश में है उस कार्य को वर्तमान में ही करें, उसे कभी भविष्य पर न छोड़ें। उपाध्याय प्रवर ने कहा जो सद्कार्य करने में हम सक्षम होते हैं वह अवश्य करने चाहिए लेकिन जिस सद्कार्य को करने में हम असमर्थ हैं उसे करने के की भावना भी हमारे अन्तर में होनी चाहिए।
उपाध्याय प्रवर ने आचारांग सूत्र के बारे में बताया कि कभी भी व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना चाहिए बल्कि उसे स्वत: स्वीकार करना चाहिए और किसी कार्य का श्रेय स्वयं लेने की होड़ नहीं करनी चाहिए। आचारांग सूत्र से निर्वाण, अन्तर शक्ति का जागरण और आत्मा की शुद्धि होती है।
धर्म से संबंधित प्रश्नोत्तरी शुरू करने के बारे में बताया कि जो प्रश्न आएंगे उनका प्रवचन के समय समाधान किया जाएगा और उस विषय पर व्याख्यान रहेगा।
तीर्थेशऋषि ने गुरुवर के प्रति मधुर संगान किया और नवकार महामंत्र की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि नवकार महामंत्र की शरण लेकर बहुत से भवी जीवों ने स्वयं के साथ अन्य जीवों का भी कल्याण किया।