चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित महासती साध्वी कंचनकुंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ. हेमप्रभा ने कहा वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से संस्कारों का संवर्धन, प्रवर्धन जटिल समस्या बन गया है। आजकल इंटरनेट गुरु बन गया है, मोबाइल प्राण, वाट्सएप-फेसबुक जीवन, कंप्यूटर-लैपटोप बाप और टीवी मां बन गई है। ऐसी पीढ़ी में संस्कारों का बीजारोपण कठिन है।
आधुनिक युग में भौतिक सुविधाओं के मायाजाल की पाश्चात्य हवा ने शुद्ध खानपान, रहनसहन और चिंतन के जीवन को नष्ट कर दिया है। पहनावा एक जैसा हो गया है कि पता नहीं चलता कि स्त्री है या पुरुष। भौतिक साधन, अपार धन-वैभव, विलास की मनमोहक चकाचौंध ने समाज और संस्कृति के सामने गंभीर परिस्थितियां उत्पन्न कर दी है।
सभी को पता है इन सभी के कारण लेकिन कोई भी इनसे बचना नहीं चाहता। समाज में फैल रहे कुसंस्कारों के कारण में सबसे अधिक दोष माता-पिता का है। आजकल मांएं छोटे से बालक को भी उसकी पसंद पूछती है, पिता संतान की हर मांग को पूरी करता है जिससे वही संतान जिद्दी बनती है और होकर उनका कहना नहीं मानती।
उन्हें जिद से अपनी मांग पूराने की आदत हो जाती है। हमने ही उन्हें बिगाडऩे का काम किया है। बचपन में दी गई स्वतंत्रता बाद में कंट्रोल नहीं होती। बच्चों को उतना ही प्यार दें कि वह बिगड़े नहीं, उनकी सारी वाहिशें पूरी करनी जरूरी नहीं। अपनी संतान को जंगल का पौधा बनने दें, घर के गमले का नहीं। आज समाज में छोटी-छोटी बातों पर डायवर्स हो रहे हैं।
जिसका कारण उनके माता-पिता का झूठा सपोर्ट करना ही है। ऐसे अभिभावक अपनी संतानों की जिंदगी नरक बना रहे हैं और स्वयं की भी। साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने पर्यूषण के पांचवें दिन अंतगड़ सूत्र का वाचन किया। प्रभु अरिष्टनेमी से वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारा भविष्य जानने और रानी पद्मावती तथा हजारों मनुष्यों को दीक्षा में सहयोग करने के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की साधना निष्फल की जानी चाहिए। किसी प्रकार के फल की कामना साधना से फल नष्ट होता है जो निदान कहलाता है। रविवार को प्रवर्तक पन्नालाल की जयंती मनाई जाएगी।