तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता महातपस्वी युगप्रणेता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महाश्रमण समवशरण से संबोधी ग्रंथ के माध्यम से उपस्थित श्रावकों को संबोध प्रदान करते हुए कहा कि सहजानंद सिद्धों को प्राप्त होता है।
सामान्य व्यक्ति मन, वचन, इंद्रिय और शरीर में आनंद ढूंढता है। सहजानंद सामान्य व्यक्ति की पकड़ में नहीं आता है वह भौतिक और मानसिक क्रियाओं में सुख ढूंढता है।
आचार्य प्रवर ने फरमाते हुए कहा कि जिसके पास बुद्धि बल होता है वह सम्माननीय होता है और बुद्धि का निरंतर विकास भी करते रहना चाहिए। बुद्धि से लिए गए निर्णय सकारात्मक और विकास के रास्ते खोलने वाले होते हैं।
आचार्य प्रवर ने फरमाया कि बुद्धि में अगर मोहनीय कर्म जुड़ जाए तो गलती हो सकती है। बुद्धि सामान्य रूप में एक शक्ति है उसका कोई किस तरह उपयोग करता है यह उस व्यक्ति पर ही निर्भर करता है। जिस प्रकार पानी का अलग अलग तरीके से उपयोग होता है उसी प्रकार बुद्धि भी हर व्यक्ति अलग अलग तरीके से उपयोग करता है।
बुद्धि को व्यक्ति के लिए कामधेनु बताते हुए कहा कि इसे जैसा उपयोग करेंगे वैसा फल मिलता जाता है। मोहनीय कर्म से जितना दूर रहें तो बुद्धि सही दिशा में संचारित होती जाती है। आचार्य प्रवर ने मोहनीय कर्म को कांच पर गिरी बूंदों के समान बताते हुए कहा कि बुद्धि रूपी वाइपर द्वारा इसे निरंतर साफ रखा जाए तो जीवन में आगे बढ़ने में सहजता मिलती है।
वर्तमान युग में केवल ज्ञानी नहीं है परंतु बुद्धि की विशिष्टता से जन-जन का कल्याण किया जा सकता है। आचार्य प्रवर ने फरमाते हुए कहा कि हर व्यक्ति की बुद्धि समान नहीं होती परंतु जिसके पास जितनी बुद्धि होती है उसे निर्मल रखने का प्रयास करते रहना चाहिए।
आचार्य प्रवर ने उपस्थित श्रावक समाज को प्रेरणा देते हुए कहा कि जीवन में उतावलापन करने से बचना चाहिए। उतावलापन अगर किसी की सेवा करने में हो तो अच्छी बात है परंतु हर जगह उतावलापन नुकसानदायक हो सकता है। किसी व्यक्ति के प्रश्न का जवाब देने में उतावलापन ना दिखाकर बुद्धि का उपयोग कर परिस्थिति के अनुसार जवाब देना चाहिए।
कुछ व्यक्ति बचपन से बुद्धिमान होते हैं और कुछ अपनी क्षमता से बुद्धि का विकास करते हैं। कुछ व्यक्तियों की बुद्धि का इतना विकास हो जाता है कि वह अपने तर्क से दूसरे व्यक्ति के प्रश्न का जवाब देकर शांत कर देते हैं। महातपस्वी आचार्य प्रवर ने सभी को अपने जीवन में बुद्धि का सकारात्मक दिशा में उपयोग करने की प्रेरणा दी।
प्रवचन के दौरान तेरापंथ के छठे आचार्य माणकगणी की वार्षिक पुण्य तिथि पर स्मरण करते हुए आचार्यवर ने गीतिका का संगान किया एवं सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया।
प्रवचन में साध्वी पानकंवर जी के देवलोकगमन होने पर स्मृति सभा का आयोजन किया एवं आचार्य प्रवर ने उन्हें धर्म संघ की विशिष्ट साध्वी बताते हुए कहा कि साध्वी पानकंवर कला कौशल से युक्त थी।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने साध्वी पानकंवर जी के प्रति भावांजली अर्पित करते हुए कहा कि एक अनुशासित और हंसमुख साध्वी थी जिन्होंने अपने जीवन को धर्म संघ के लिए समर्पित किया।
उनकी कला अद्भुत थी उनकी चित्रकला की एक प्रति दिखाते हुए कहा कि वह चित्रों के माध्यम से शब्द बनाने में कौशल थी। स्मृति सभा में मुनि धर्मरुचिजी, साध्वी यशोमतीजी ने भी अपनी भावांजलि प्रकट की। डॉ. नागेन्द्र जी चांसलर एस. व्यासा युनिवर्सिटी योगा गुरु बेंगलोर एंड डॉक्टर्स की टीम ने आचार्य प्रवर के दर्शन किए एवं आशीर्वाद ग्रहण किया।