धर्म से नहीं भटकने वाला ही पाता है लक्ष्य
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकारने वाला सम्यकत्व और नहीं स्वीकारने वाला मिथ्यात्व है। यह दुनिया जिम्मेदारियों से बचना चाहती है और जैन धर्म मनुष्य को जिम्मेदार बनना सिखाता है। यदि व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को छोडक़र केवल अधिकार जताता है तो उसके साथ ही उसे घृणा, तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ता है और जो अपने कर्तव्यों को स्वीकार करता है उसका जीवन बदल जाता है, उसका जीवन शिखर को छूता है।
जो लोग अपने उद्देश्य को भूल जाते हैं वे संसार में भटकते रहते हंैं। इस राजमार्ग पर वे ही सफल होते हैं जो वीर होते हैं। बाहर के युद्धों से जीत पाने से अधिक कठिन है स्वयं पर विजय प्राप्त करना। स्वयं के क्रोध, अहंकार, मद के साथ युद्ध करना चाहिए। अहिंसा, करुणा और संयम के राजमार्ग पर राजा ही चल पाते हैं, चोर नहीं।
जो कदम रोके उनकी बात सुनें नहीं। इस संयम से डिग गए तो उसी क्षण उद्देश्य और आपकी यात्रा की मृत्यु हो जाएगी। जो अपनी निष्ठा के साथ चलता है उसे ही इन्द्र वन्दन करते हैं। यही सफलता का मार्ग है। जिसने भी इस वीरत्व का रस एक बार चखा वह इसे छोड़ नहीं पाया। अपने अपमान करने वाले का भी सम्मान करने वाला वीर पुरुष कहलाता है।
मुनि तीर्थेशऋषि ने कहा कि गुरु भगवंतों के चरणों में समर्पित होकर अपने अन्तर के परमात्मा को जाग्रत करें। कुछ जीव जो परमात्मा के सानिध्य में रहने के बाद भी परमात्मा के नहीं बनते, अपनी दुर्जनता नहीं छोड़ते। वे संसार के मोह-माया आवरण के कारण सज्जनों की संगत में रहते हुए भी सद्गुणों को ग्रहण नहीं करते। धर्मसभा में चातुर्मास समिति द्वारा मासखमण तपस्या पर संध्या चोरडिय़ा का बहुमान किया गया।
शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर के सानिध्य में दोपहर १ से ५ बजे तक व्यापार जगत के लिए ‘कैसे धर्म और श्रद्धा को व्यापार जगत से जोड़ें’ विषय पर शिविर का आयोजन सी.यू.शाह भवन, पुरुषवाक्कम में किया जाएगा।