कोडम्बाक्कम वड़पलनी श्री जैन भवन के प्रांगण में आज तारीख 03/09/2022 शुक्रवार को प.पू. सुधाकवरजी मसा ने श्रावक के छः आवश्यक सूत्रों में से छठे आवश्यक सूत्र “प्रत्याख्यान” के बारे में समझाया! अपनी इच्छा से जो भी छोटे बडे त्याग किये जाते हैं वे “प्रत्याख्यान” कहलाते हैं! भोजन एवं पकवान के प्रति जो आकर्षण होता हैं, उपवास के प्रत्याख्यान के बाद वह आकर्षण खतम हो जाते है! प्रत्याख्यान का मतलब एक दृढ संकल्प, अपने मन की इच्छाओं पर एवं आसक्ति पर नियंत्रण का होना है! हम जिन चीजों का सेवन करते हैं उनका आगार रखकर बाकी सभी चीजों का प्रत्याख्यान कर लेना चाहिए! वरना दुनिया के सभी क्रियाओं का दोष हमें लगता है! बिना भाव के लिये गये सामायिक या उपवास के प्रत्याख्यान, “दुष्प्रत्याख्यान” कहलाते हैं! पवित्र भाव, अहोभाव, हित अहित, जीव अजीव के बोध से लिये गये *प्रत्याख्यान “सुप्रत्याख्यान” कहलाते हैं! संक्षेप में कहें तो जितना सुख “त्याग” में है उतना “भोग” में नहीं!
प.पू. विजयप्रभा मसा ने फ़रमाया कि श्रावक के 21 प्रकार के गुण होते हैं ! उसमें 11वें गुणानुराग को महावीर भगवान ने गुण दृष्टि एवं दोष दृष्टि में विभाजित किया है! जो व्यक्ति अवगुण में भी गुण और बुरे में भी अच्छे को ढूंढ लेता है वह “गुण दृष्टि” कहलाता है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है! बकरी की मिंगणी तुच्छ दिखती है लेकिन खेत में डाल दी जाये तो खेत लहलहाने लग जाते हैं! राजहंस दूध पीकर पानी को छोड़ देता है! सड़क पर कुत्तिया की दुर्गंध से सभी लोग नाक भौं सिकोड़ते नजर आते हैं, लेकिन कृष्ण को उसके सुन्दर दांतो की बत्तीसी दिखाई देती है! कांटों से घिरे गुलाब का फूल दिखाई देना और अमरबेल जिस वृक्ष के सहारे बढ़ती है उसी में उस का समावेश हो जाना “गुण दृष्टि” कहलाता है! जो व्यक्ति गुणों में भी अवगुण, अच्छे में भी बुरा ढूंढ लेता है वह “दोष दृष्टि” से ग्रसित होता है और नरक गति या तिर्यंच गति को प्राप्त करता है!