रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि पर्युषण पर्व के दिवस चल रहे है आज तृतीय दिवस है। जिन्होने तप त्याग का लक्ष्य रखा है उसे साधने का समय यदि अवसर चुक जायेगा तो अब पछताये क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत अत: जागृत बनो ! अपनी आत्म शक्ति को तोलो और पुरुषार्थ करो। यदि सम्यक उपयोग नहीं किया तो वह पाप में लग जायेंगी। “दो घडी राग की” यहाँ राम का अर्थ है आत्मा” । चौबीस धंटो में दो धडी आत्मा के लिए निकालो ।
लक्ष्य विहीन जीवन का कोई मूल्य नहीं है। जीवन का लक्ष्य है तप त्याग करना, लक्ष्य की ओर कदम बढाओ। एक दिन आपका सुलक्ष्य अवश्य पूरे होगा। तिर्यंच भी जीते है आप भी, किन्तु असंज्ञी के लक्ष्य नहीं होता। आप तो संज्ञी कर्म भूमि मनुष्य हो तो आपका लक्ष्य भी ऊँचा होना चाहिए, यहाँ तक देवता भी कर्मभूमि संज्ञी मनुष्य बनने के लिए तड़पते है! देवलोक में धर्मपराक्रम का सामर्थ्य नहीं है। किंतु आप में है।
अरिष्टनेमि भहिलपुर नगरी में श्रीवन उधान में विराजित हुए। राजा महाराजा आदि देशना सुनने आए ! और उस समय सुलसा के छः पुत्र देशना सुनने आए और वैराग्य हो गया। देशना कानो से, प्राणो से सुनो तभी जिनवानी भीतर जाती है। जीव चिन्तन मनन करता है तब संसार की असारता का भान होता है। छः सहोदर भाई एक समान रूप वाले कुबेर के समान थे। आज का विज्ञान इतना विकसित हो गया है कि आहार पर्याति में परिवर्तन कर चाहे जैसे संतान उत्पन्न करती है। उन छः भाईयों के आहार पर्याप्त एवं माता के भाव एक से होने से 1 से 6 भाईयों का एक समान रूप भाव था। पुरुषार्थ से सब कुछ संभव है।
कर्म जैसे बांधे है, वैसे ही भोगने संभव नहीं। पुरुषार्थ के द्वारा संक्रमण किया जा सकता है! यहाँ तक कि निकाचित कर्मो को भी हल्का किया जा सकता है! हरिणगमैषी देव के सहयोग से देवकी के छः पत्र सुलसा के पास पहुँचा दिया और सुलसा के छ मृत पुत्र, देवकी के पास पहुँचा दिया। सुलसा ने छ: पुत्रो को संस्कार दिए ! 72 कला की शिक्षा दी एवं विध्या वही जिससे चारित्र का निर्माण हो! आज के युग केरियर पर ध्यान दिया जाता है, चारित्र पर नहीं है! आज के बच्चों को चारित्र निर्माण के लिए लिए क्रांति लानी है।
इसलिए ज्ञानी जन कहते है संस्कार देना ही बड़ी बात है! यदि चारित्र का निर्माण हो गया तो आपका धन कमाना सार्थक है। सुलसा के छः बालको को संस्कारित किया। जैसे आप साग सब्जी, घर की वस्तएं लाते हैं उसे संस्कारित करना पडता है वैसे ही संतान को भी संस्कारित करना होगा। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने संचालन किया। ज्ञान युवक मण्डल द्वारा धार्मिक प्रतियोगिता रखी गई। सभी विजेताओं को पुरस्कार संघ द्वारा दिया गया।