Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

अपना दीपक स्वयं बनो : आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरी 

अपना दीपक स्वयं बनो : आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरी 
बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी अक्कीपेट जैन संघ के तत्वावधान में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए अपने प्रवचन में अपना दीपक स्वयं बनकर सभी को अपना मार्ग स्वयं ही चुनने की प्रेरणा देते हुए कहा कि इसे स्वयं ही आलोकित करना है तथा उस पर स्वयं ही चलना भी पड़ता है।
कोई किसी के लिए नहीं चल सकता, कोई किसी का दीपक नहीं बन सकता। आचार्यश्री ने कहा कि अगर आप उदास, कमजोर, निराश, संदेह या संकोच से घिरा महसूस कर रहे हैं तो खुद के पास लौटें, देखें कि वर्तमान में आप कहां हैं, क्या हैं और क्यों हैं।
अपना पथ-प्रदर्शक स्वयं को ही बनना पड़ता है और उसी दीपक की शुभ्र, धवल उज्ज्वल ज्योति में जीवन-पथ पर अग्रसर होना पड़ता है। आचार्यश्री ने कहा कि रजत कणों से भरा है मानव का जीवन-पथ। हर मोड़, हर गली, पग-पग पर हमारे ही कदमों के तले रजत-कण बिखरे पड़े हैं।
आवश्यकता है उन्हें देखकर समेट सकने की, आत्मसात कर सकने की, जीवन में उनका सदुपयोग करने की, उनके प्रयोग से अपने मन के अंधेरे कोनों को प्रकाशित कर सकने की और उसी प्रकाश को सभी प्राणियों के जीवन में फैला सकने की। सत्य है कि शांत और स्थिर दिमाग बेहतर काम करता है।
हर समय की बेचैनी किसी काम नहीं आती। ना हम वह कर पाते हैं, जो करना चाहते हैं और ना ही वह, जो दूसरे अपेक्षा कर रहे होते हैं।
समस्याएं कैसी भी हों, हमारा व्यवस्थित न होना समस्याओं को बढ़ा देता है। उन्होंने यह भी कहा कि अपने आपको परिपक्व बनाएं और परिवर्तन के बुरे नतीजों के बारे में आशंकित नहीं होना चाहिए।  देवेंद्रसागरसुरीजी ने कहा कि स्वयं को बदलें, खुद की रोशनी बनें और दूसरों को भी प्रकाशित करें।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar