श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जारी नवपद ओली आराधना के अंतर्गत श्रीपाल चरित्र का वांचन करते हुए जयकलश मुनि ने कहा महापुरुषों का जीवन दूसरों के उपकार के लिए होता है।
परोपकार ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। सामने वाला व्यक्ति भले ही कैसा भी व्यवहार करें लेकिन उसके प्रति दुर्भावना नहीं आनी चाहिए । जिस प्रकार वृक्ष पर पत्थर मारने पर भी उसके द्वारा फल दिया जाता है, वैसे ही मनुष्य को भी अपकार करने वाले के प्रति उपकार करना चाहिए।
संसार में सबसे ज्यादा उपकारी पर अपकार करने वाले होते हैं, फिर थोड़े अपकारी पर अपकार करने वाले, उससे कम उपकारी पर उपकार करने वाले और सबसे कम अपकारी पर उपकार करने वाले होते हैं । ऐसे विरले व्यक्ति महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं। ईंट का जवाब पत्थर से देने की नीति के कारण झगड़ा ओर बढ़ जाता है जबकि एक तरफ से अगर सही व्यवहार हो तो सामने वाले के अंदर भी परिवर्तन आ जाता है।
दूसरों का अहित करने वाला और कुबुद्धि रखने वाला व्यक्ति स्वयं अपने बिछाए जाल में फंस जाता है । जैसे मकड़ी अपने जाल में फंसती हैं, वैसे ही दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला स्वयं ही उस गड्ढे में गिर जाता है। धवल सेठ ने भी श्रीपाल को मारने हेतु षड्यंत्र रचा पर स्वयं ही उस षड्यंत्र में फंसकर अकाल में मृत्यु को प्राप्त हुआ।
बुरा का अंत बुरा ही होता है। जो व्यक्ति ऐसे कुकर्म करता है, दूसरों को कष्ट पहुंचाने का प्रयास करता है, उसके पाप का गड्डा एक ना एक दिन अवश्य ही फूटता है। व्यक्ति को अपने किए कर्म का फल उसी भव मे भी मिल सकता है। जरूरी नहीं है जो जैसा सोचता है वैसा ही होगा।
जीव जैसा बीज बोता है वैसा ही उसे फल भोगना पड़ता है। पुण्यहिन व्यक्ति के सारे दाम उल्टे हो जाते हैं। पुण्यवाणी प्रबल है तो उल्टा भी सुल्टा हो जाता है। मुनिवृंद के सानिध्य में 14 अक्टूबर से प्रातः 9:30 बजे से उतराध्ययन सूत्र का वांचन प्रारंभ होगा। शरद पूर्णिमा पर जयमल जैन पौषधशाला में 15 सामायिक के साथ धर्म जागरण भी आयोजित होगा।