पुज्य जयतिलक जी म सा ने बताया कि अनादिकाल से सोई हुई आत्मा श्रवण करके ओर निद्रा से जागृत होती और मोक्ष प्राप्त किया। मोह नही टूटता तब तक मौका प्राप्त नही कर सकता। एक बार यदि मोह निद्रा से जागृत है गई तो वह वापस नही सोती, उसके लिए कई प्रयास करने पड़ते है।
दो मित्र थे दोनो मे धनिष्ठ मित्रता थी। उनका शरीर अलग लेकिन मन एक था। दोनो साथ – साथ रहते थे। एक बार मुनि राज गांव मे पधारे दोनो ने सोचा हम भी जिनवाणी सुने। दोनो चले गए। मुनिराज ने संसार का स्वरूप प्रस्तुत किया। सब सुनकर अपने- अपने स्थान चले गए। एक मित्र बोल मै संयम लेऊंगा। तुम सब जाओ। धर्म कार्य में साथ निभाने वाले नही मिलेंगे पिक्चर आदि में साथ निभाने वाले मिल जायेंगे। लेकिन धर्म कार्य में साथ नहीं निभाएगे। वहां हजारो काम का बहाना बनायेंगे, लेकिन साथ नही बनाएंगे। घूमने फिरने आमोद प्रमोद मे किसी को पूछने की जरूरत नही, धर्म कार्य मे बेटे का बहाने बनाता है।
बात चल रही थी दो दोस्त की दोस्त दिक्षा के लिए तैयार होता है तो दूसरा दोस्त बोलता है मै भी तेरे साथ दिक्षा लुंगा। ‘धर्म कार्य मे किसी के साथ का इन्तजार नही करे। धर्म कार्य मे सहयोग की इच्छा नही करे। मौका मिलते ही बिना साथ के धर्म करे। दोनो मित्र एक साथ संयम लेते है। उत्कृष्ट संयम की आराधना करके एक दोस्त देवलोक चला जाता है दूसरा दोस्त मुनि के रूप मे रह गया। जीव अकेला आया और अकेला ही जाएगा कुछ दिन बाद दूसरे मित्र में भी शरीर को छोड़ा और उसी देवलोक मे गया। स॑चालन गौतमचंद खटोड़ ने किया। यह जानकारी नमिता स॑चेती ने दी।