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अनर्थ के पापों से बचना चाहिए: जयधुरंधर मुनि

अनर्थ के पापों से बचना चाहिए: जयधुरंधर मुनि
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि ने श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के अंतर्गत आठवें व्रत का विवेचन करते हुए कहा पाप का सेवन दो प्रकार से किया जाता है।
एक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मजबूरी में पाप करता है जबकि दूसरा व्यक्ति अनावश्यक ही मौज-मस्ती के लिए पापों का सेवन करता है।अज्ञानता के कारण ऐसा व्यक्ति निश्प्रयोजन पापों का बंद कर अपनी आत्मा को भारी बना डालता है। ऐसे पाप निश्चित ही आत्मा को पतन की ओर ले जाते हैं इसीलिए अनर्थ के पापों से बचना चाहिए। अनर्थ के पापों का दंड भी इस आत्मा को भोगना ही पड़ता है।
अतः सावधानी रखनी चाहिए। इंसान जितना प्रयोजन से पाप करता है उससे कई गुना ज्यादा बिना प्रयोजन पाप का सेवन कर लेता है ।बुखार जैसी बीमारी को दूर करने के लिए औषधि हेतु तुलसी या नीम के पत्ते तोड़ना अर्थदंड है ,वहीं दूसरी ओर उद्यान में टहलते हुए केवल मनोरंजन के लिए फूल ,पत्ते आदि तोड़ना अनर्थदंड है।
बिना कारण बंद कमरे में पंखा, लाइट आदि चालू करना ,झूठा छोड़ना, छाती कूट- कूट कर रोना, बिना मतलब का आर्त ध्यान करना ,क्रोध एवं द्वेष वश हिंसा ,झूठ, चोरी आदि पाप करने और करवाने में आनंद लेना यह सभी कार्य अनर्थदंड की श्रेणी में आते हैं। विवेक के द्वारा अनर्थ के पापों से बचा जा सकता है।
एक आदर्श श्रावक को मद्य, निद्रा, विकथा, विषय एवं कषाय इन पांच प्रमादों का सेवन नहीं करना चाहिए। हिंसक साधनों का इकट्ठा करना तथा पाप कर्म करने का उपदेश देना भी निश्प्रयोजन पाप कहलाता है। पाप कभी करने में ज्यादा, कभी कराने में ज्यादा, तो कभी अनुमोदना से भी ज्यादा लग सकते हैं। इसीलिए यथासंभव इन सब अनर्थ ठंड से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आठवें व्रत के 8 आगार- अपने लिए, राजा की आज्ञा से, जाति कुल के लिए, परिवार के लिए, वैमानिक देव के लिए, भवनपति, भूत, यक्ष आदि देवों के कारण अनर्थदंड सेवन करना पड़े तो इनका आगार रखा जाता है। आठवें व्रत के  पांच अतिचारों के अंतर्गत काम विकार पैदा करने वाली कथा नहीं करनी चाहिए, भाण्डो की तरह कुचेष्टा नहीं करनी चाहिए, उटपटांग नहीं बोलना चाहिए, प्रयोजन से अधिक हिंसक साधनों का एकत्रीकरण नहीं करना चाहिए, तथा भोग -उपभोग की जरूरत से ज्यादा संग्रहवर्ती भी नहीं होनी चाहिए। धर्म सभा में उपस्थित अनेक श्रावक -श्राविकाओं ने व्रत ग्रहण किए।
जयमल जैन चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया मुनिवृंद के स्थान में शनिवार से नव दिवसीय आंयबिल ओली तप आराधना प्रारंभ होगी। इसके अंतर्गत श्रीपाल चरित्र का वांचन एवं प्रतिदिन सामूहिक आराधना भी कराई जाएगी।
किरणदेवी कोठारी धर्मपत्नी सुरेशचंद कोठारी ने जयधुरंधर मुनि के मुखारविंद से 31 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए ।

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