दिवाकर भवन पर चल रहे पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के सातवे दिवस पर मेवाड गौरव प्रखर वक्ता रविन्द्र मुनि जी म.सा.ने पर्युषण पर्व के अंतर्गत अन्तगड सूत्र के वाचन करते हुए गुरुदेव ने फ़रमाया की पवित्रता, शुचिता, निर्मलता उत्तम धर्म का पर्याय है इसका अर्थ शुद्धि है। तन की ही नहीं, मन की भी शुद्धि है।
अध्यात्म की शरण लिए बिना मन शुद्ध नहीं हो सकता। तन को नहीं मन को भी मांजो। मन को मांजते रहने पर काम, क्रोध, माया, मान, लोभ आदि विकार दूर होते चले जाएंगे।केवल चेहरा ही नहीं, उसमें हमारा चरित्र भी दिखना चाहिए। जिसने भी लोभ पर विजय पा ली, उसने इस संसार में सब कुछ जीत लिया। लोभ चित्त को कलुषित करता है। चोरी, हत्या, झूठ सभी कषाय, कुविचार और दुष्प्रवृत्तियां लोभ के वशीभूत होती है। लोभ ही सब पापों की जड़ है। क्रोध की अधिकतम सीमा 48 मिनट होती है। मान तब तक बना रहता है, जब तक कि उसे नीचा दिखने लगे। मायाचार भी अल्पकाल तक रहता है, लेकिन लोभ जन्म से मृत्यु तक बना रहता है।
धन का, नाम का, प्रतिष्ठा का, स्वर्ग का, मोक्ष का सबका लोभ बना रहता है। यहां तक कि पुण्य और सुख का भी लोभ मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता। पूजन और यज्ञ से कार्य सिद्ध हो जाए यह भी एक प्रकार का लोभ ही है। जबकि धर्म लोभ नहीं, अपितु संतुष्टि का नाम है। धर्म भय नहीं, अभय का नाम है।उपरोक्त जानकारी देते हुए श्रीसंघ अध्यक्ष इंदरमल टुकड़िया कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल ने बताया कि श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य श्री शिवमुनि जी म.सा.की 82वी जन्म दिवस जीवदया दिवस के रूप में मनाया गया। जैन दिवाकर बहु मंडल द्वारा नाटिका का मंचन किया गया।जेसिका श्रीश्रीमाल, उज्जवल भंडारी, दीपिका राका द्वारा स्तवन के माध्यम से प्रस्तुति दी।
जिनशासनरत्न श्रीमान प्रकाश जी पिपलिया ने 79 उपवास एवं अनिल जी चपडोद, दर्शित श्रीश्रीमाल, शशि बालाजी छाजेड,माही सियार, मोना जी टुकड़िया स्मिता जी संघवी, ओशीन राका, दिया श्रीश्रीमाल,खुशी कोचट्टा ने ,7 उपवास के प्रत्याख्यान गुरुदेव से लिए। तपस्वी के तप अनुमोदनार्थ श्रीसंघ द्वारा सकल संघ की चोवीसी का आयोजन सागर साधना भवन पर रखी गई। प्रभावना का लाभ श्रीमती कोमलबाई राजमल जी वर्धमान जी माण्डोत परिवार ने लिया धर्म सभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार श्रीसंघ उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।