माधावरम्, चेन्नई ; आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकरजी माधावरम्, चेन्नई स्थित जैन तेरापंथ नगर, जय समवसरण में विशेष प्रवचन में श्रद्धालुओं से कहा आज प्रगति और विकास का युग है। सभी तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। पर जहां भी भौतिक चकाचौंध में धर्म और अध्यात्म को भुला दिया जाता है, वहां विकास भी विनाश का कारण बन जाता है। भारत के अनुभवी विचारको ने संतुलित जीवन दर्शन पर बल दिया है। आज की युवा पीढ़ी को उसे गहराई से समझने की जरूरत है। जिन राष्ट्रों में विकास के भौतिक पक्ष को यह महत्व दिया जाता है, वहां के पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और बिखराव बढ़ रहा है। उसके साथ नाना प्रकार के मानसिक रोग तथा आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं।
मुनि श्री ने आगे कहा हमारी जीवन शैली संयम और अहिंसा प्रधान होनी चाहिए। जिससे हम आगे बढ़ते हुए सुखी और स्वस्थ जीवन जी सकें। इसके साथ ही सोने-जागने से लेकर सारी दिनचर्या नियमित और व्यवस्थित होनी चाहिए। धार्मिक स्वाध्याय और साधना से ही आंतरिक उल्लास का जागरण हो सकता है। जहां भीतर में उल्लास और प्रकाश नहीं है। वहां बाहर से दिवाली मनाने पर भी भीतर अशांति की होली जलती रहती है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि हमारा जीवन विरोधी पदार्थों विचारों एवं घटनाओं का संगम है। हमारे शरीर में अग्नि, पानी व वायु आदि विरोधी द्रव्य है। स्वास्थ्य के लिए इनका संतुलन जरूरी है। अग्नि का मंद होना या कुपित होना, बीमारी है। इसी प्रकार जीवन में हमें अनेकता में एकता तथा विषमता में समता से जीना चाहिए। मनुष्य विचारशील प्राणी है। वह मशीन का उत्पादन नहीं है। उसमें मतभेद होना स्वाभाविक है।
अनेकांतवाद के अनुसार मतभेद होने पर भी मनभेद नहीं होना चाहिए। अपने विचारों के प्रति वफादार और समर्पित रहना चाहिए। इसके साथ ही दूसरों के विचार और अधिकारों के प्रति उदार और सहनशील होना चाहिए। हमें संसार में जितने भी जड़ और चेतन पदार्थ है, उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। सच्चा ज्ञानी वह है जो आत्म तुला की चेतना जगाता है, सब के प्रति समता और समानता की भावना विकास करता है। बाहर की बातों के आधार पर किसी को छोटा-बड़ा समझना भूल है।
मुनि नरेशकुमारजी ने कहा विकास का सूत्र है विनम्रता। अहंकार पतन का कारण है। हमें अभिमान से बचना चाहिए।