श्रमण संघीय आचार्य देवेन्द्र मुनि का हुआ गुणानुवाद
एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी के सान्निध्य में उत्तराध्ययन सूत्र का स्वाध्याय हुआ। मोक्ष- मार्ग- गति अध्याय की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि हमने यज्ञ अध्ययन में वास्तविक, आध्यात्मिक और साधु की समाचारी के स्वरूप को समझा। जो- जो साधन है, उनके लिए सुंदर व्यवस्था इस अध्ययन में की गई।
इसका हमें पालन करना है। यह साधक का कर्तव्य है और वह उसकी प्रसन्नता का विषय होना चाहिए। अधूरे मन से किया गया काम व्यक्ति को लक्ष्य तक नहीं पहुंचाता है। जो व्यक्ति अनुशासन में नहीं है, लक्ष्य के प्रति जागरूक नहीं है तो समूह में सब उसके दुःख से दुःखी हो जाते हैं। हमारा चरम लक्ष्य मोक्ष है। वास्तव में देखा जाए तो छोटे से लेकर लक्ष्य मोक्ष का ही है। हरेक व्यक्ति मुक्ति चाहता है। जिसको गति करनी है, उसको मोक्ष का मार्ग दिया है।
उन्होंने कहा मोक्ष प्राप्ति के लिए चार साधन है ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। ज्ञान हमें पदार्थ को समझने के बोध में सहायक होता है। दर्शन हमें स्वरूप का बोध कराने में सहायक है। चारित्र हमको नियंत्रित करने में सहायक है। तप हमें निर्मल बनाता है।
उन्होंने कहा मक्खन से घी बनता है तो उसे तपना पड़ता है और तब वह शुद्ध बनता है। वैसे ही कर्म छोड़ने पर आत्मा शुद्ध होती है और सिद्ध बुद्ध बनती है। सम्यक्त्व की वृद्धि करने के लिए आठ अंग है शंका न करे, इच्छा न करे, जुगुप्सा न करे, जो गुणी जनों की अनुमोदना करे, धर्म के प्रति स्थिर रहे, वात्सल्य की प्रभावना करे इत्यादि। इस प्रकार से मोक्ष मार्ग की ओर पराक्रम करना।
युवाचार्यश्री ने अगले अध्ययन में कहा कि धर्म श्रद्धा से हमारे तीव्र कषाय खत्म होते हैं। वंदना करने से नीच गौत्र का क्षय होता है। प्रतिदिन पूर्व या उत्तर दिशा में 9 या 27 वंदना करते हैं तो कई चीजें सहज उपलब्ध होती है। वे हमारे सौभाग्य को बढ़ाने वाली है। यदि हम संयम पराक्रम करते हैं तो सिद्ध बुद्ध बनने की ओर आगे बढ़ते हैं।
श्रमण संघीय आचार्य देवेन्द्र मुनि की जन्म जयंती पर गुणानुवाद करते हुए उन्होंने कहा कि उदयपुर के बागरेचा परिवार में जन्मा एक सुकुमार बच्चा, जिसका जन्म धनतेरस के दिन हुआ और उसके लिए उसका नाम धन्नालाल रखा गया। वे श्रमण संघीय तृतीय पट्टधर आचार्य देवेन्द्र मुनि थे। जब जैन साहित्य की बहुत कमी थी, उस समय उन्होंने कई साहित्यों का सर्जन किया। उन्होंने कई आगमों की बड़ी प्रस्तावना लिखी। उन्होंने ऐसा विपुल लेखन किया कि वह ज्ञान साधना का आलंबन सिद्ध हुआ। इन महापुरुषों का बड़ा उपकार है। उनका 1999 में घाटकोपर में संथारापूर्वक देवलोकगमन हुआ। उनके द्वारा निर्मित स्वाध्याय से मोक्ष का पराक्रम करना चाहिए। ज्ञान के क्षेत्र में उनका स्वाध्याय मील का पत्थर साबित हुआ।
युवाचार्यश्री ने कहा धर्म श्रद्धा से हमारे तीव्र कषाय खत्म होते हैं। वंदना करने से नीच गौत्र का क्षय होता है। प्रतिदिन पूर्व या उत्तर दिशा में 9 या 27 वंदना करते हैं तो कई चीजें सहज उपलब्ध होती है। वह हमारे सौभाग्य को बढ़ाने वाली है। यदि हम संयम पराक्रम करते हैं तो सिद्ध बुद्ध बनने की ओर आगे बढ़ते हैं। कमलचंद छल्लाणी ने सभा का संचालन किया।