सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
ठाणागं में चार प्रकार के पुत्र का वर्णन आता है *अतिजात, अनुजात, अवजात, कुलंगात*
*अतिजात*-वह पुत्र होता है जो अपने नाम से जाना जाता है।
*अनुजात* – जिसे पिता के नाम से जाना जाता है।
*अवजात*- मामा के नाम से जाना जाता है
*कुलंगात*- जो ससुर के नाम से जाना जाता है । पुरुषार्थ करके व्यक्तित्व पैदा किया श्री नरेन्द्र मोदी जी ने। पुरुषार्थ का प्रभाव, जो प्रबल पुरुषार्थी होते है ऐसे व्यक्तित्व पैदा करते है उनके पीछे चलते है वे अतिजात पुत्र होते हैं *चरमशरीरी, महापुरुष* वे अपने नाम से जाने जाते हो जिसको अपने नाम से प्रसिद्धि पाना है वह हमारे पास आ जाओ ।
हमारी सस्कारी पद्धति है पिता का नाम सरनेम गांव का नाम बोला जाता है।
*123 वाँ जन्म दिन है* आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महारासा का । माँ ने धर्म संस्कार दिये। जो माता बच्चे धर्म से जोड़ हे वह माता माता है
*गुरु रत्न ऋषि जी मासा*. ने अपने शिष्य को रत्न बनाया। पुरा नियंत्रण , अनुशासन था, स्वाध्याय में रमण करा दिया जेन व जेनोत्तर आगम के जानकार थे।
गला सुन्दर था, दर्शन शास्त्र, न्याय दर्शन, व्याकरण का ठोस अध्ययन था। उस समय के संतो में चार महापुरुष थे। श्री आत्मारामजी मासा श्री अमरचन्द जी, श्री आनन्द ऋषि जी , जवाहरलाल जी मासा बुद्धिमान थे समाधान देने की ताकत थी।
प्रधान आचार्य बनाया, यशनाम कर्म का उदय था, योग्यता थी। महापुरुष से भ्रमण संघ गौरवशाली हुआ व्यापक परिभ्रमण रहा दुरदृष्टि वाले थे।
दिक्षा किसे कहते है! बालक को दिक्षा देना नही समाज मना करता है, बुढे व्यक्ति को दिशा देना नहीं सन्त कहते है और जवान दीक्षा लेने को तैयार नहीं। गुरुदेव ने समाधान दीया *उम्र न देखी जाय पात्रता देखी जाय !* ऐसी विद्वता । आदेश हे 9 साल में दीक्षा दी जा सकती है, वृद्ध को जो सक्षम है उनको दी जा सकती है । स्मरण-शक्ति मजबुत । मालव केसरी में सबको जोड़नो की शक्ति थी। आदमी की क्षमता पात्रता पहचानने की क्षमता थी।
आचार्य श्री की दुरदृष्टी थी। प्रसिद्ध यश, निर्मल यश था निर्मल बुद्धि से समाधान किया। जो राग देष मे न उपझते है न उलझाते है महापुरुष होते हे। आपस में विनय, विवेक शीलता था। महापुरुषों आपस में सम्मान की भावना ।
एक दुसरे का आदर सम्मान । हमारे भ्रमण संघ का नायक कितना सक्षम है, विचक्षणता थी, समय सुचकता थी। अचार्य भगवन की विशेषता थी उन्होंने गुरुदेव व मरूधर केसरी सलाहकार रूपी दो कन्धे थे। | कंधा जीसका मजबूत उनको कोई रोक सकता। *तपस्वी, त्यागी* जीवन था।
जय-आनन्द गायेजा, चरणों में शीश झुकायेगा, ऋषि वर आनन्द का नाम रटो, कलिमल भावो से दूर हटो, यह गीत रसीक सुनाये जा जय आनंद…….
आचार्य श्री सन 1964 में खाचरौद पधारे थे। भूमि का सौभाग्य था आनन्द बरसा था। सबके उपर वातसत्य दृष्टि थी सबको बस एक नजर की जरूरत थी। सबके आहार के बाद आहार करते थे। हमने उनका प्रसाद पाया, कीसी संत, संघ व्यक्ति, के प्रति नाराजगी नहीं। साधनामय दृष्टी थी, महापुरुष साधक हुए दिन में अध्ययन स्वाध्याय करते थे ,उनके शिष्य आदर्श ऋषि जी विद्वान हे। पुरा संघ संभाल रखा है। बहोत आत्मीयता, पद्मऋषि जी माहारसा संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी, आगम, अन्य दर्शनों का अध्ययन है।
बहुत क्षमता थी कि स्वयं पढ़ाते थे। ग्रंथ पढ़ाते थे चिंतन की दृष्टि देते थे। आज उनका *123 वा जन्म दिवस* है हम उनको स्मरण करके गोरवनवीत, हर्षित होते है।