कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आत्मोत्थान के महापर्व पर्युषण की आध्यात्मिक धूम जन-जन को अपनी ओर आकृष्ट कर रही है। तभी तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में श्रद्धालुओं की इतनी विराट उपस्थिति हो रही है कि विशाल पंडाल भी मानों बौना साबित होता जा रहा है। जैन धर्म में विशेष स्थान रखने वाले इस महापर्व का आध्यात्मिक लाभ उठाने के लिए जन-जन उत्साहित, उल्लसित है।
शनिवार को आचार्यश्री ने अपने प्रवास स्थल से कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार के साथ मुख्य कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी विशालयशाजी ने भगवान अरिष्टनेमि के जीवन वृतांत का वर्णन श्रद्धालुओं को सुनाया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने संयम धर्म से संबंधित गीत का संगान किया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने संयम धर्म को विवेचित करते हुए लोगों को संयम के द्वारा आत्मशुद्धि की आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया।
साध्वी सिद्धांतप्रभाजी, साध्वी धैर्यप्रभाजी व साध्वी तेजस्वीप्रभाजी ने अणुव्रत चेतना दिवस के संदर्भ में अणुव्रत पर आधारित गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ के अवसर पर उद्बोधन देते हुए कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने ग्रन्थ और पंथ से ऊपर उठकर एक ऐसे आन्दोलन कार सूत्रपात किया जो मानवता पथ प्रशस्त करता है। मानवीय मूल्यों को स्थापित करने और अनैतिकता से नैतिकता की ओर गति करने का मार्ग अणुव्रत ही प्रशस्त कर सकता है।
अणुव्रत की प्रासंगिकता को संपूर्ण देश ने स्वीकार किया। आदमी धार्मिक होते हुए भी अनैतिक हो जाता है, यह बहुत बड़ा विस्मय है। बौद्धिक लोग जब तक धर्म को प्रयोग करते हुए उसे अपने आचरण में नहीं उतारते, बदलाव नहीं हो सकता। अणुव्रत युगीन समस्याओं का समाधायक है। आदमी को अणुव्रत के माध्यम से अपने जीवन को संयमित बनाने का प्रयास करना चाहिए।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव के सामने जब किसानों ने शेर की समस्या रखी तो अपने अधीन वाले क्षेत्रों के राजाओं की सुरक्षा के दिन निर्धारित किए। जब पोतनपुर के राजा प्रजापति का दिन आया तो उसके दोनों पुत्र अचल और त्रिपृष्ठ ने उनसे प्रार्थना करते हुए कहा कि आपकी ड्यूटी हम निभाएंगे।
वे दोनों शेर की गुफा की ओर गए। शेर को आता देख त्रिपृष्ठ रथ से नीचे उतरता है और शेर के पास कोई शस्त्र ना देखकर खुद के भी शस्त्र का त्याग कर देता है। शेर जब आक्रमण करता है तो साहसी त्रिपृष्ठ उसका जबड़ा पकड़ लेता है और उसे किसी पुराने बांस की भांति चीर डालता है।
इसकी सूचना जैसे ही अश्वग्रीव को प्राप्त होती है, उसे ज्योतिष द्वारा की गई दूसरी भविष्यवाणी भी सत्य दिखाई देने लगती है। वह त्रिपृष्ठ को मारने की योजना बनाता है और फिर एक दिन पोतनपुर पर हमला कर देता है। युद्ध में त्रिपृष्ठ अश्वग्रीव का वध कर देता है और वर्तमान अवसर्पिणी का प्रथम वासुदेव बन जाता है।
विश्व के देशों में रहे शांति और मैत्री की भावना
आचार्यश्री ने युद्ध के वृतांत के दौरान विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि विश्व के सभी देशों को सौहार्द और मैत्री के भाव से रहने का प्रयास करना चाहिए। शस्त्र शस्त्रागारों में ही रहें। आपसी सौहार्द को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। कई लोग हिंसा आदि कार्यों में अपना मनोरंजन समझते हैं। जिसमें हिंसा हो वैसे मनोरंजन से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ के अवसर पर ‘अणुव्रत है सोया संसार जगाने के लिए’ गीत का संगान करते हुए श्रद्धालुओं को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में अणुव्रत के नियमों को यथासंभव पालन करने अपने जीवन को संयमयुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का आरम्भ किया। अहिंसा यात्रा के तीनों उद्देश्य भी अणुव्रत के ही मानों नियम हैं। लोगों को उसके संकल्पों से अपने जीवन में बदलने का प्रयास करना चाहिए। श्री अर्पित मोदी ने 39 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
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