चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्राध्ययन सूत्र के दौरान मनुष्य को संसार के झूठे भावो का त्याग कर शुद्ध भावों से आगे बढ़ना चाहिए।
अपने भाव ऐसे होने चाहिए जिससे मोक्ष का मार्ग खुल जाए। भगवान के समोसरण की ओर बढ़ते जाने से जीवन बदलता जाएगा। भक्ति करते समय मनुष्य को खुद को पुण्यशाली मानकर परमात्मा का आभार जताते रहना रहना चाहिए।
सोचते रहना चाहिए कि जीवन को सुखी करने के लिए और क्या पुण्य किया जा सकता है। अगर मन मे पुण्य करने की भावना के साथ सूत्र का अध्यन किया गया तो निश्चय ही पुण्य गठित होने लगेगा। उन्होंने कहा कि आत्मा को दुख झेलने की आदत मनुष्य के कर्मो से हुई है।
आत्मा शास्वत होने के बाद भी मनुष्य के गलत कर्मो की वजह से दुख झेल रही है। अभी सबक नहीं लिया तो इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वातावरण का मनुष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अगर वातावरण अच्छा रहा तो मनुष्य का जीवन अच्छा बन जायेगा। अन्यथा जीवन खराब हो जाएगा।
धर्म सभा में धर्म और कर्म का माहौल होता है जिससे पुण्य गठित होने लगते है। इससे पीछे नहीं हटना चाहिए। इस वातावरण में ढल कर जीवन सुंदर करने का प्रयास करना चाहिए। निर्भर आप पर करता है कि आप किस वातावरण को अपनाते हैं। लेकिन याद रहे कि वातावरण का भविष्य से जुड़ाव होता है।
वातावरण अच्छा हुवा तो निसंदेह भविष्य अच्छा होगा। संयम की विशेषताओ को याद रखते हुए अगर आगे बढ़ा गया तो निश्चय ही मोक्ष मिलेगा। संयम का पालन करते हुये महापुरुष सिद्ध, बुध्द और मुक्त हो गए है। संसार के भार से मुक्त होना है तो पालन करते हुए चले।संचालन मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया