चेन्नई. धनवान यदि चने खाए तो कहते हैं शौकीन मन वाला है और निर्धन चने खाए तो कहते हैं क्या करे बेचारा भूखा मर रहा है। विचार भावनाओं तक ले जाता है, भावनाएं कार्यों तक और कार्य आपके परिणामों तक ले जाता है।
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने युवा क्रांति शिविर में दौलत के सिद्धांत विषय पर प्रवचन में कहा दौलत की दो लात होती है,जब वह आती है तो इंसान को अंधा कर देती है और जब वह जाती है तो पराधीन कर देती है। जीवन में यदि बनना ही है तो लक्ष्मीचंद बनो, लक्ष्मीदास नहीं, क्योंकि लक्ष्मीदास सदैव उदास ही रहता है। पैसा सबको प्यारा लगता है।
पैसे वाला आता है तो सभी उसको आगे बुलाते हैं और निर्धन के आने पर उसका कोई भाव नहीं पूछता। पुत्र यदि पैसा कमाकर लाता है तो पिता उसे कुलदीपक कहते हैं और माता लाल दुलारा कहती है। पैसा देखकर पत्नी पति को सुंदर बताती है और परिवार के सदस्य कुल श्रृंगार।
धन प्राप्त करने के बाद भी यदि हमारे विचार उल्टे चलते हैं, तो वह पाया हुआ धन भी हमें सुखी नहीं बना सकता। पैसा आपको सिर्फ वही ज्यादा बनाएगा, जो आप पहले से हैं। सबसे अच्छा भुगतान पाने के लिए हमें सबसे अच्छा बनना ही होगा।
जिंदगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करो बल्कि खुद ही अच्छे बन जाओ। आपसे मिलकर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए। सपने जिसके ऊँचे और मस्त होते हैं, परीक्षा भी उनकी जबरदस्त होती है। प्रवचन के पश्चात् मुनिद्वय ने जैन आराधना भवन पहुंचकर जैन धार्मिक पाठशालाओं का 36वां वार्षिक पारितोषिक प्रदान समारोह मनाया गया।