साध्वी जी ने बताया- अहंकार गर्दन में और छलकपट का स्थान दिल में होता है
जैन दर्शन में वर्णित 18 पापों का बखान करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने मंगलवार को अहंकार और माया पाप पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि छलकपट और प्रपंच को माया कहते हैं तथा इनका इस्तेमाल अच्छाई के लिए भी किया जाए तो उसका परिणाम भुगतना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि 19वे तीर्थंकर मल्लीनाथ भगवान जब महावत कुमार के भव में थे और उनके साथ उनके छह अन्य मित्रों ने दीक्षा लेकर बेले-बेले (दो उपवास) की तपस्या कर पारणा कर रहे थे। उस दौरान महावत कुमार ने अपने मित्रों से कपट कर उन्हें बताए बिना तीन उपवास की तपस्या कर ली। जिसका परिणाम यह हुआ कि मल्लीनाथ भगवान को स्त्री भव में जन्म लेना पड़ा। धर्म सभा में साध्वी वंदनाश्री जी श्रावक के 21 गुणों पर प्रकाश डाल रही हैं। आज उन्होंने पांचवे गुण मानवता की व्याख्या करते हुए कहा कि श्रावक में दूसरों के कल्याण की भावना होनी चाहिए। साध्वी जयश्री जी ने भगवान मेरा जीवन मानव कल्याण के लिए हो…भजन का गायन किया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने 18 पापों में से छठवे नंबर के पाप अहंकार से दूर रहने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि रावण, दुर्योधन और कंस जैसे बलशालियों का अहंकार नहीं टिका तो हमारी गिनती कहां होगी। ये तीनों महारथी धन, वैभव, बल और बुद्धि में हमसे आगे थे, लेकिन अहंकार ने उनके जीवन को नष्ट कर दिया है। भगवान महावीर जब मारीच के भव में थे तब उन्होंने अपने जाति और कुल का अहंकार किया, इसका परिणाम उन्हें भोगना पड़ा और अगले भवों में उनका जन्म छोटे भाई के रूप में हुआ।
इसके बाद उन्होंने सातवे नंबर के पाप माया पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि कपटी व्यक्ति का व्यवहार बहुत अच्छा होता है और उसकी वाणी से फूल झरते हैं, लेकिन उसकी स्थिति उस कपटी बगूले के समान होती है जो एक टांग पर खड़ा होकर मछली का शिकार करने के लिए तपस्वी बनकर साधना कर रहा होता है। उन्होंने कहा कि कपटी व्यक्ति किसी का विश्वास पात्र नहीं होता है। जहां छलकपट है वहां समस्याएं खत्म नहीं होतीं और जहां सरलता है वहां समाधान निकल आता है। धर्मसभा में पुणे से आए श्रावकों का जैन श्रीसंघ ने स्वागत और अभिनंदन किया।