यहां शांति भवन में ज्ञानमुनि एवं लोकेश मुनि के सन्निध्य में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई। अवसर पर ज्ञानमुनि ने कहा अगर श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे तो श्री कृष्ण कर्मयोगी थे। उनके कर्म व गुण के कारण ही भगवान श्री कृष्ण को शताब्दी बीतने के बाद भी लोग दिल से याद करते हैं। इसी लिए मानव को गुण का संग्रह करना चाहिए।
आप वक्त या समय का संग्रह नहीं कर सकते लेकिन गुण का संग्रह कर सकते हैं। धर्म की राह दिखाने वाले श्री कृष्ण को जन्म लेते ही माता पिता का बिछोह सहना पड़ा था। ये सब कर्म का खेल है। कर्मो के खेल काफी निराले होते हैं, ऋषि मुनि भी इनसे हारे हैं। इन्होंने मित्र के लिए जूठी पत्तल भी उठाई एवं रथ का सारथी बनना मंजूर किया। सच्चा मित्र वही होता है जो कोई भी काम को छोटा न समझता हो। जहां भी जाए कोई भी कार्य करें। हमारा कर्तव्य ही शोभा है। कर्तव्य है तो हम शोभित हैं।
कर्तव्य, गुण व कर्म को बड़ा समझने के कारण ही आज भी उनको याद किया जाता है। जिस रूप और देश में भी हो आप ईमानदारी से कार्य करो वही आपकी साधना है। जिस रूप में हो कर्तव्य करें, जीवन में कर्तव्य करना ही साधना है। उनका जीवन पूरा सादगी भरा था। मित्र के लिए द्वार तक नंगे पांव दौड़े चले आये थे। वे अपने बाल सखा को भी नहीं भूले थे। इसलिए ऐसा मित्र बनाएं जो दुख में तो आगे रहे सुख में पीछे।